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*लखनऊ/अकबरनगर के विस्थापितों की व्यथा, न सुविधाएं, न अधिकार, फिर भी 10 साल की किस्त का बोझ डाल रहा एलडीए*

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*लखनऊ/अकबरनगर के विस्थापितों की व्यथा, न सुविधाएं, न अधिकार, फिर भी 10 साल की किस्त का बोझ डाल रहा एलडीए*

 

लखनऊ। एक तरफ सरकार “सबका साथ, सबका विकास” का नारा देती है, दूसरी ओर लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) का एक अमानवीय फैसला अकबरनगर से विस्थापित बसंतकुंज के गरीब निवासियों की तकलीफों को और भी बढ़ा रहा है। जिन लोगों को अपने मूल घरों से उजाड़ कर बसंतकुंज में बसाया गया, उन्हें न तो मूलभूत सुविधाएं दी गईं, न रोजगार, न शिक्षा और न ही स्वास्थ्य की कोई व्यवस्था। इसके साथ ही यहां की नालियां बजबजा रही हैं, पानी का कोई निकास नहीं है। ऊपर से अब एलडीए 15 साल की आसान किश्त की बात से पलटकर केवल 10 साल की भारी किश्त वसूलने पर आमादा है।

यह वही बसंतकुंज है, जहां आज भी लोग स्कूल, अस्पताल और रोजगार जैसी बुनियादी ज़रूरतों के लिए तरस रहे हैं। बच्चों के लिए स्कूल दूर हैं, महिलाएं इलाज के अभाव में तड़प रही हैं, और रोज़गार के नाम पर यहां रेत सरीखा सूनापन है। ऐसे में, जो जनता पहले से ही भूख, बीमारी और गरीबी से लड़ रही है, उस पर 10 साल की भारी-भरकम किश्त का बोझ डालना किसी अन्याय से कम नहीं।

यहां के लोगों की पीड़ा शब्दों में बयान करना कठिन है। जब उन्हें यहां बसाया गया था, तो होल्डिंग्स और बैनरों में बड़े-बड़े वादे किए गए थे “15 साल की आसान किश्तों में घर का मालिक बनिए।” मगर यहां ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिल रहा है।

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