*भोजपुरी के रोपनी गीत में है इको पोएट्री- एक नजर-क्या प्रकृति की नजारा*

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*भोजपुरी के रोपनी गीत में है इको पोएट्री- एक नजर-क्या प्रकृति की नजारा*
“राजा दशरथ एगो पोखरा खोनवले, ए राम,
बहुविधि घाट बनवले ए राम,
पोखरा के तीरे तीरे बिरिछ लगवले, एक महुआ आ एक आम, ए राम!”
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भोजपुरी के इस रोपनी गीत को पढ़िए और इसकी विवेचना करें आज के इको पोएट्री से। भोजपुरी में श्रम मजदूर महिलाओं द्वारा ऐसे गीत तब समूह में गाए जाते हैं जब बारिश का पानी खेत में आता है और औरतें धान के बिचड़े को खेत में एक एक कर रोपती हैं और गाती है। इको फेमिसिज्म में एक टर्मिनिलोजी है केयर एंड कैंपेशन। तो पानी का, पेड़ का और प्रकृति का कैसे संरक्षण करे इस गीत में उल्लेखित है। कैसे हमें अपने प्रकृति के प्रति क्रूरता नहीं करुणा भाव रखना है वह यह रोपनी गीत सिखाती है। भोजपुरी के इस लोकगीत में जीवन का सरगम है तो प्रकृति का राग भी है।
इको- क्रिटिक Rob Nixon की एक थ्योरी है स्लो वॉयलेंस (slow voilence)। इसमें कहा गया कि धीरे धीरे पर्यावरण के क्षरण हो रहा है इसका दोषी मानव ही है। इसी दोष से मुक्ति का गीत है रोपनी गीत।
वही रोपनी गीत में इको पोएम की तरह मानव प्रकृति का संबंध है। मानव के क्रिया कलाप को कैसे प्रकृति को प्रभावित करती है इस कविता के मूल में है।
आज जब हम ग्लोबल वार्मिंग से जूझ रहे है, विकास के नाम डिफोरेस्टेशन चरम पर है, नदियां दुबली होती हुई नाली का शक्ल ले रही हैं तो इस वक्त में इको पोएट्री की बात होने लगी है पर भोजपुरी में श्रम संस्कृति में शुरू से प्रकृति के समस्त तत्वों के संवर्धन पर ध्यान दिया गया।
भोजपुरी लोकगीतों को नए सिरे से खोलने की जरूरत है।
दिनेश मिश्र-न्यूज एंटीकरप्शन भारत

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