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*नशे की लत में तबाह होती हुई युवा पीढ़ी का सच-दिनेश मिश्रा-न्यूज़ एंटीकरप्शन भारत*

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*नशे की लत में तबाह होती हुई युवा पीढ़ी का सच-दिनेश मिश्रा-न्यूज़ एंटीकरप्शन भारत*

 

मनुष्य की ज्ञानेंद्रियों को विवेक हीन करने की प्रक्रिया का नाम नशा है। नशे की परिणति आदमी के नष्ट होने की होती है। तंबाकू, शराब, गांजा, चरस, अफीम और स्मैक आदि नशे की लत ने बहुत सी जिंदगियां तबाह की हैं।

आप देखिए तो पाएंगे कि जब इंसान किसी कुसंग के कुचक्र में पड़ता है, तो साथी पहले उसे मुफ्त में पिलाते हैं, फिर नशे की लत लगने पर संबंधित अपना घर बार बेच कर पीता है। इसलिए नशे के कुचक्र में उलझने से पहले कुसंग के चक्रव्यूह को भेदना होगा।

आप देखिए तो पाएंगे कि  बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू, गांजा, चरस और भांग के सेवन की लत व्यक्ति के मस्तिष्क को हैवान बना देती है। नशा किया आदमी जानवर बन जाता है। शराबी व्यक्ति को न तो परिवार की चिंता होती है और न ही समाज की चिंता होती है, बस उसे हर हाल में लत लगाने वाले वस्तु की प्राप्ति की चिंता होती है।

मैंने देखा है कि मेहनतकश इंसान, शाम को शराब के नशे में अपनी बीवियों और बच्चों को जानवरों की तरह गाली देता है और उन्हें बुरी तरह से पीटता है। नशा आदमी को पतित बनाने के साथ संबंधित इंसान को हिंसक भी बनाता है। नशे से आदमी का सामाजिक रूप से ही पतन नहीं होता बल्कि उसका चारित्रिक और आर्थिक पतन भी हो जाता है। कभी यदि शराब जहरीली हुई तो आदमी मर भी जाता है। सोचिए, यदि नशे की हालत में संबंधित व्यक्ति स्वयं की ज्ञानेंद्रियों और कर्मेंद्रियों पर नियंत्रण खो देता है। नशे की हालत में ड्राइविंग करता हुआ आदमी रोड एक्सीडेंट का भी शिकार हो जाता है। गत दिनों एक घटना से मन व्यथित है।

नशे का शिकार व्यसनी भिन्न भिन्न प्रकार के अपराधों में संलिप्त भी इसलिए होता जाता है क्योंकि उसे नशा करने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है। नशेड़ी पैसों के लिए अपराध करता है। घर में बीबी, बच्चे भले ही पाई पाई के मोहताज हों, किंतु नशेड़ियों को शराब, सिगरेट और गुटखा जरूर चाहिए। बीबी के जेवर को बेचकर पियेंगे।

शराब लीवर को खराब कर देती है। किडनी की बीमारी के लिए भी शराब ही जिम्मेदार है। अत्यधिक शराब पीने की दशा में शराबी के पांव लड़खड़ाएंगे, और अगर यदि वह गिर जाता है, तो उसकी मृत्यु भी सुनिश्चित है। गुटखे का सेवन करने वालों का पूरा मुख नहीं खुलता। भंगेड़ियों और गंजेडियों की तो पूछिए मत। नशेड़ियों की जमीन बिकना आम बात है। न जाने कितनी हवेलियां, नशे की लत में बिक गईं। न जाने कितने घर तबाह हो गए।

मधुशाला के रचयिता कविवर हरिवंश राय बच्चन ने भले ही मधुशाला में बैर कराते मंदिर मस्जिद, मेल कराती मधुशाला जैसी काव्यात्मक पंक्तियां लिखी हों, हालांकि ये काव्यात्मक पंक्तियां व्यंजनात्मक हैं किंतु यथार्थ यही है कि पूजा स्थल व्यक्ति को आचरण और शील युक्त बनाती हैं जबकि  मदिरालय इंसान के मन और मस्तिष्क को क्षीण करके, उसे कहीं का नहीं छोड़ती हैं। नशेड़ी, आपराधिक चरित्र का मनोविकारी होता है। हालांकि बच्चन जी के यहां मधुशाला, प्रतीक के रूप में ही प्रयुक्त है।

गौरतलब है कि नशेड़ियों से सर्वाधिक कष्ट उनके परिजनों को होता है। यदि किसी परिवार का कोई आदमी, शराब की लत या नशीले पदार्थों की लत का शिकार हो गया है, तो वह परिवार के लिए श्राप के समान होता है और उनकी तकल़ीफ समाज के ताने-बाने को ही कमजोर कर देती है। भारत जैसे देश में, इसकी जनसंख्या के स्वरूप को देखते हुए, शराब की लत तथा नशीले पदार्थों का दुरुपयोग बहुत चिंता का विषय है।

सवाल यह है कि नशा, आदमी को कैसे छोड़े । इसके लिए संबंधित को आत्मानुशासन की प्रक्रिया से गुजरते हुए दृढ़ प्रतिज्ञ, स्वयं के प्रति जवाबदेह, परिवार और समाज के प्रति ईमानदार बनना होगा। आपको समाज में अपने पारिवारिक गौरव की चिंता होनी चाहिए। कुसंगियों का साथ छोड़ना होगा। अपने बीबी और बच्चों से प्रेम और स्नेह करना होगा ताकि आप एक सुगठित और सुव्यवस्थित पारिवारिक और सामाजिक संरचना का निर्माण कर सकें। याद रखिए नशा,  इंसान के मस्तिष्क का विनाश कर देती है। नशे का शिकार आदमी राक्षस के समान होता है

 

दिनेश मिश्र के कलम से न्यूज़ एंटी करप्शन भारत

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