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*गोपियां भगवान का प्रेम पाने के लिए एक-दूसरे से ईर्ष्या करती थीं। अगर ईर्ष्या भी करना है तो भक्ति में करो- राम कमल दास वेदांती जी महाराज*

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*गोपियां भगवान का प्रेम पाने के लिए एक-दूसरे से ईर्ष्या करती थीं। अगर ईर्ष्या भी करना है तो भक्ति में करो- राम कमल दास वेदांती जी महाराज*

 

 

व्यक्ति के ऊपर कुर्सी का रंग नहीं चढ़ना चाहिए। कुर्सी के ऊपर व्यक्ति का रंग चढ़ जाए तो वही ‘योगी’ है, और व्यक्ति के ऊपर यदि कुर्सी का रंग चढ़ जाता है तो वह ‘भोगी’ होता है। जो गिरकर स्वयं को संभाल ले, उसे इंसान कहते हैं, परंतु कुसंग व्यक्ति को संभलने नहीं देता है। संभलने के लिए सत्संग ही सहारा है।

कंस के कुसंगी मंत्रियों ने सलाह दिया कि ब्रजमंडल में जितने नवजात शिशु हैं, उन सबकी हत्या कर दी जाय। कंस ने ऐसा ही किया, पर भगवान श्री कृष्ण को मार न सका, फिर पूतना गली-गली घूमकर श्री कृष्ण को खोजने लगी। पूतना शृंगार करके एकदम सुंदर रूप बनाकर यशोदा जी के पास जाती और श्री कृष्ण को उठाकर दूध पिलाने लगती थी। उसने अपने स्तनों में काल-कूट विष लगा रखा था। श्री कृष्ण ने उसका वध कर दिया। पूतना भी सौभाग्यशाली थी कि वह भगवान को अपने गोद में लेकर दूध पिलाती थी। इस प्रकार पूतना भी तर गई।

पूतना हमारे अंदर बैठी हुई अविद्या है। यह अविद्या अर्थात् अज्ञान जब तक रहता है, तब तक वो हमें सन्मार्ग पर नहीं चलने देता है। जब हम भगवान को अपने हृदय में लाते हैं, तो वो हमारे अंदर बैठी हुई पूतना को मार देते हैं।

जो सुख, जो आनंद आप अपने लिए चाहते हो, वही दूसरों के लिए मांग लो तो वह आनंद स्वयं तुम्हें मिल जाएगा, और यदि दूसरों के लिए दु:ख मांगोगे तो तुमको भी दु:ख ही मिलेगा। इसलिए सबके कल्याण के लिए सोचिए, इसी में हमारा कल्याण भी निहित है।

गोसेवा से बड़ी कोई सेवा नहीं है, और गोशाला से पवित्र कोई स्थान नहीं होता है। हमारे मुख्यमंत्री, गोरक्षपीठाधीश्वर, महंत श्री MYogiAdityanath जी महाराज रोज गोसेवा करते हैं।

गोपियां भगवान का प्रेम पाने के लिए एक-दूसरे से ईर्ष्या करती थीं। अगर ईर्ष्या भी करना है तो भक्ति में करो, सद्‌गुणों में करो, जीवन सफल हो जाएगा। सनातन धर्म में ऐसी विशेषता है कि यहाँ भक्त भगवान को जिस रूप में चाहे रख सकता है, भगवान प्रेम से रहते हैं। अन्य किसी धर्म में अपने पूज्य को ऐसा करने का सामर्थ्य नहीं है।

माँ यशोदा परम ब्रह्म परमात्मा श्री कृष्ण का कान पकड़ कर डांटती हैं। भगवान अपने भक्त अर्जुन के सारथी बन जाते हैं। अपने बच्चों को संस्कारित करना है, अपने बच्चों को आचारवान बनाना है, तो उनको अपने साथ सत्संग में ले जाया करें। जिस बच्चे के अंदर बचपन से भगवान की भक्ति रहेगी, वह कभी भी अपने जीवन में गलत आचरण नहीं करेगा। वही बच्चा चरित्रवान बनता है, जिसका पिता अपने घर में अशुद्ध कमाई न लाता हो तथा जिसकी माता भगवान की भक्त होती है। हमारे अंदर जो अभिमान है, वही बगुला है, तथा ‘तेरा’ और ‘मेरा’ नामक उसकी दो चोंच हैं। जिसके अन्दर अभिमान होता है, उसको वह अपनी इन चोंचों से लील जाता है। भगवान की भक्ति करने से भगवान उस अभिमान को मारते हैं।

– कथाव्यास स्वामी डॉ. राम कमल दास वेदान्ती जी महाराज

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