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*सबसे पहले भगवान श्रीराम ने किया था पुनपुन नदी के तट पर पूर्वजों का पिंडदान*

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*सबसे पहले भगवान श्रीराम ने किया था पुनपुन नदी के तट पर पूर्वजों का पिंडदान*

 

मोक्ष द्वार के रूप में देश-विदेश में विख्यात

बिहार के गया जी में पितृ पक्ष के दौरान फल्गु नदी या उसके तट पर पिंडदान का बड़ा महत्व है।

 

लेकिन आदि गंगा कही जाने वाली पुनपुन नदी को पितृ तर्पण की प्रथम वेदी माना जाता है।
आश्विन मास की कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से आरंभ होकर अमावस्या तक चलने वाले पितृ पक्ष के मौके पर अपने पूर्वजों की मोक्ष की कामना लिए लाखों लोग गया आते हैं। पितरों के मोक्ष की कामना लिए गया आने वाले श्रद्धालु सबसे पहले राजधानी पटना से करीब 13 किलोमीटर दूर पुनपुन पहुंचते हैं, जहां आदि गंगा पुनपुन के तट पर पहला पिंडदान किया जाता है।

पुनपुन नदी प्रथम पिंडदान का स्थान है,हां देश-विदेश के श्रद्धालु अपने पितरों के लिए पूजा एवं तर्पण करते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार
पुनपुन नदी को पितृ तर्पण की प्रथम वेदी के रूप में स्वीकार किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने सबसे पहले पुनपुन नदी के तट पर ही अपने पूर्वजों का पिंडदान किया था। उसके बाद ही फल्गु नदी में किया था पिंडदान।

फल्गु नदी के तट पर किया था पिंडदान
पितृ पक्ष के दौरान पितरों के मोक्ष दिलाने के लिए गया में पिंडदान से पहले पितृ-तर्पण की प्रथम वेदी के रूप में मशहूर पुनपुन नदी में प्रथम पिंडदान का विधान है। पुराणों में वर्णित ‘आदि गंगा’ पुन: पुन: कहकर पुनपुन को आदि गंगा के रूप में महिमामंडित किया गया है और इसकी महत्ता सर्वविदित है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार
इस स्थल पर गयासुर राक्षस का चरण है। गयासुर राक्षस को वरदान प्राप्त था कि सर्वप्रथम उसके चरण की पूजा होगी। उसके बाद ही गया में पितरों का पिंडदान होगा। आदि गंगा पुनपुन में पिंडदान करने के बाद ही गयाजी में किया गया पिंडदान पितरों को स्वीकार्य होता है।
गया से पहले पुनपुन में पिंडदान की मान्यता।

श्री राम गया गए थे गंगा नहीं मिली तो पुनपुन नदी में किया था राजा दशरथ का श्राद्ध

पटना से 13 किलोमीटर दूर पुनपुन नदी के तट पर हर साल पितृपक्ष मेला लगता है।मान्यता है कि भगवान राम ने राजा दशरथ का पहला श्राद्ध यहीं किया था। इसलिए इसे मोक्ष का द्वार भी कहा जाता है। त्रेता युग से ही पुनपुन नदी के घाट पर पितरों का पिंडदान किया जाता है।

यहां के पंडा राकेश मिश्रा बताते हैं कि ‘पौराणिक कथा में उल्लेख मिलता है कि जब राजा दशरथ का पिंडदान करने के लिए भगवान राम गया जी आए तो वहां गंगा नहीं थी। इस कारण पुनपुन आकर उन्होंने राजा दशरथ का पहला पिंडदान किया था। इसके बाद से इस क्षेत्र का महत्व बढ़ गया। गया जी जाने से पहले लोग पितरों के पिंडदान की शुरुआत पुनपुन घाट से करते हैं।’

राम ने गंगा के तट पर किया था पिंडदान पुनपुन धाम के पंडा समाज के सचिव राकेश मिश्र बताते हैं कि ‘इस नदी की उत्पत्ति को लेकर पुराणों में वर्णन है कि इसे चामन्य ऋषि ने ब्रह्मा जी के अनुष्ठान के बाद लाया था। पुराणों के श्लोक में पुनपुन नदी का उल्लेख मिलता है। मोक्ष की प्राप्ति के लिए गंगा का यह तट काफी महत्व रखता है।’
पुराणों के श्लोक में पुनपुन नदी का जिक्र मिलता है।
पुनपुन में पहला श्राद्ध करने के बाद गया जाते हैं

पंडा राकेश मिश्र कहते हैं कि ‘तीर्थ यात्री पुनपुन से श्राद्ध और तर्पण के साथ पिंडदान करते हैं। इसके बाद ही गया जी जाते हैं। गया जी में पितरों के यज्ञ के लिए 54 वेदियां हैं। इसमें 45 वेदी पर पिंडदान और 9 वेदी पर तर्पण करते हैं। प्रवेश द्वार पुनपुन को बताया गया है, जहां से श्राद्ध का प्रारंभ होता है।’
गया में उड़कर आई थी राजा दशरथ के चिता की राख

पंडा राकेश मिश्र एक पौराणिक कथा का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि ‘राजा दशरथ को अपने चार पुत्र राम, लक्ष्मण, भारत और शत्रुघ्न में सबसे प्रिय बड़े बेटे राम थे। राजा दशरथ की मृत्यु के समय भरत, शत्रुघ्न ने उनका अंतिम संस्कार किया था। लेकिन, भगवान श्रीराम उस वक्त अपने छोटे भाई लक्ष्मण और सीता के साथ वनवास में थे।’
‘राजा दशरथ की मृत्यु के समय उनकी चिता की बची हुई राख उड़कर गया में फल्गु नदी के पास पहुंची थी। माता सीता ने इस राख से राजा दशरथ का पिंडदान किया था। कहा जाता है मां सीता को इस राख में राजा दशरथ का दर्शन हुआ था। तब सीता ने अपने हाथों से पिंडदान की इच्छा जाहिर की थी। अपने ससुर की इच्छा पूरी करने के लिए सीता ने फल्गु नदी के किनारे वट वृक्ष, गाय और नदी को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाया था। इसके बाद राजा दशरथ प्रसन्न हुए और माता सीता को आशीर्वाद दिया था।’

पंडा समाज के लोगों का कहना है कि ‘पुनपुन में देश के सभी राज्यों के अलावा नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से भी पिंडदान करने के लिए लोग आते हैं।’ पुरोहित राकेश मिश्रा बताते हैं कि ‘नेपाल के राजा परिवार से महाराज श्री युद्ध शमशेर, कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को 1984 संवत में यहां पिंडदान के लिए आए थे। इसके अलावा उनके परिवार के राजशाही परिवार के कई लोग पुनपुन घाट पर पिंडदान के लिए आते रहे हैं।’
पुनपुन घाट पहुंचने के लिए पटना जंक्शन से कई सुपरफास्ट और पैसेंजर ट्रेनें खुलती हैं। पटना से पुनपुन घाट की दूरी करीब 10 किलोमीटर है, जबकि सड़क मार्ग से इसकी दूरी लगभग 13 किलोमीटर है। वहीं दूसरी तरफ गया से पुनपुन घाट से ट्रेन की दूरी 89 किलोमीटर और सड़क मार्ग से इसकी दूरी 92 किलोमीटर है।
जानिए क्या है प्रशासन
जिनकी अकाल मौत उनके लिए 975 फीट ऊंचाई पर पिंडदान
पूर्वजों-पितरों का श्राद्ध और तर्पण कर उनकी आत्मा की शांति के लिए भगवान से कामना करते हैं। इस साल 10 लाख से ज्यादा पिंडदानी गया पहुंच सकते हैं।

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