सरकार की आलोचना के लिए पत्रकार पर दर्ज नहीं होने चाहिए आपराधिक मुकदमा=सुप्रीम कोर्ट

😊 कृपया इस न्यूज को शेयर करें😊
|
सरकार की आलोचना के लिए पत्रकार पर दर्ज नहीं होने चाहिए आपराधिक मुकदमा=सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि सरकार की आलोचना वाले लेख लिखने के लिए पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं होने चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा है कि लोकतांत्रिक देशों में व्यक्ति को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है।
जस्टिस ऋषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की पीठ ने पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की ओर से दाखिल याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करते हुए यह टिप्पणी की है। उपाध्याय ने याचिका में उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमा को रद्द करने की मांग की है। उन्होंने याचिका में कहा है कि उत्तर प्रदेश में सामान्य प्रशासन की जाति गतिशीलता को लेकर एक समाचार रिपोर्ट प्रकाशित करने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस ने उनके खिलाफ एफआईआर की है, इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए। जस्टिस रॉय ने कहा कि ‘पत्रकारों के खिलाफ महज इसलिए आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं किए जाने चाहिए क्योंकि उनके लेखों को सरकार की आलोचना के रूप में देखा जाता है। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक देशों में, अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है। साथ ही कहा कि पत्रकारों के अधिकारों को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत संरक्षित किया जाता है।
पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। साथ ही, तब तक संबंधित लेख के संबंध में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाने का निर्देश दिया है। मामले की सुनवाई 4 सप्ताह बाद होगी। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता एक पत्रकार है और उसने राज्य में जिम्मेदार पदों पर तैनात अधिकारियों पर ‘जातिवादी झुकाव वाला एक लेख प्रकाशित किया। पीठ ने कहा कि लेख के बाद, उसके खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ने एफआईआर की सामग्री को पढ़कर कहा कि उक्त एफआईआर से कोई अपराध नहीं बनता है। फिर भी याचिकाकर्ता को निशाना बनाया जा रहा है और चूंकि कहानी एक्स (पहले ट्विटर) पर पोस्ट की गई थी, इसलिए इसके परिणामस्वरूप कई अन्य एफआईआर हो सकती हैं। याचिकाकर्ता अभिषेक उपाध्याय ने याचिका में कहा है कि उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करना राज्य की कानून प्रवर्तन मशीनरी का दुरुपयोग करके उनकी आवाज को दबाने का एक स्पष्ट प्रयास है। उन्होंने कहा कि आगे किसी भी तरह के उत्पीड़न को रोकने के लिए इसे रद्द किया जाना चाहिए। उपाध्याय की ओर से अधिवक्ता अनूप प्रकाश अवस्थी ने याचिका में कहा है कि उनके मुवक्किल द्वारा ‘यादव राज बनाम ठाकुर राज शीर्षक से एक स्टोरी किए जाने के बाद 20 सितंबर को लखनऊ के हजरतगंज पुलिस स्टेशन में उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। याचिकाकर्ता के वकील ने पीठ से कहा कि याचिका दाखिल किए जाने के कारण यूपी पुलिस के आधिकारिक एक्स हैंडल द्वारा कानूनी कार्रवाई की धमकी है और याचिकाकर्ता को यह जानकारी नहीं है कि इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश या कहीं और उसके खिलाफ कितनी अन्य एफआईआर दर्ज हैं।

Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें |
Advertising Space
