*जब बारिश नहीं होती तब गांव के बच्चे खेलते थे काल कलाउटी-बच्चे लोटते हुए गाते हैं-काल कलौटी उज्जर धोती-काले मेघा पानी दे-दिनेश मिश्रा की कलम से*

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*जब बारिश नहीं होती तब गांव के बच्चे खेलते थे काल कलाउटी-बच्चे लोटते हुए गाते हैं-काल कलौटी उज्जर धोती-काले मेघा पानी दे-दिनेश मिश्रा की कलम से*
गांव में जब बारिश नहीं होती तब गांव के बच्चे काल कलाउटी खेलते हैं। हर घर के द्वार पर जाकर जमीन पर लोटते है और घरवाले उन पर पानी डालते हैं।
बच्चे लोटते हुए गाते हैं-काल कलौटी उज्जर धोती,
काले मेघा पानी दे।
पानी दे गुड़धानी दे।
काले मेघा पानी दे।
गगरी फूटी बैल पियासा
काले मेघा पानी दे।
नाही तो आपन नानी दे।
काले मेघा पानी दे।
बरसो राम धड़ाके से,
बढ़िया मर गयी फाके से।
लोटने के बाद हर घर से भोजन बनाने का सामान लेते हैं और गांव के बाहर जाकर भोजन बनाते खाते हैं।
कोई दाल लायेगा, कोई भूजिया चावल लाएगा, कोई खटाई, कोई सरसों तेल, कोई लहसुन मिर्च, कोई आलू, कोई टमाटर, कोई हल्दी मसाला, कोई नमक लाएगा कोई बर्तन, पानी जो कुछ नहीं ला सकता वो लकड़ी बिनेगा और आग की व्यवस्था करेगा और फिर बनेगी खिचड़ी चोखा और होगा सब बच्चो का भंडारा।
केले के या सागौन के पत्ते पर जैसा भी कच्चा पक्का भोजन बना है परोसा जाएगा।
घर पर कितना भी स्वादिष्ट भोजन बना हो बच्चे नाक सिकोड़ते हैं और अपने बनाए कच्चे पक्के भोजन को मजे ले लेकर शौक से खाते हैं।
कभी कभी मेढक मेढ़की का विवाह भी करवाया जाता है।
गांव में बारिश करवाने के कुछ यू टोटके किए जाते हैं।
बारिश का तो पता नहीं लेकिन ये लोकाचार बड़े मजेदार होते थे।

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