नमस्कार 🙏 हमारे न्यूज पोर्टल - मे आपका स्वागत हैं ,यहाँ आपको हमेशा ताजा खबरों से रूबरू कराया जाएगा , खबर ओर विज्ञापन के लिए संपर्क करे +91 8756625830 ,हमारे यूट्यूब चैनल को सबस्क्राइब करें, साथ मे हमारे फेसबुक को लाइक जरूर करें , *एक पुराना ऐतिहासिक पुल जो आज भी दमदारी के साथ है खड़ा-आईए जानते हैं कहां है यह ऐतिहासिक पुल* – News Anti Corporation Bharat

News Anti Corporation Bharat

Latest Online Breaking News

*एक पुराना ऐतिहासिक पुल जो आज भी दमदारी के साथ है खड़ा-आईए जानते हैं कहां है यह ऐतिहासिक पुल*

😊 कृपया इस न्यूज को शेयर करें😊

*एक पुराना ऐतिहासिक पुल जो आज भी दमदारी के साथ है खड़ा-आईए जानते हैं कहां है यह ऐतिहासिक पुल*

 

प्रयागराज की खासियत यह है कि यह तीन तरफ़ से नदियों से घिरा है और इसके तीनों रेलमार्ग अंग्रेज़ों द्वारा लोहे का बनाया हुआ है।

 

यह तीनों पुल इंजीनियरिंग की शानदार मिसाल हैं और इसमें सबसे पुराना नैनी ब्रिज भारत के सबसे लंबे और सबसे पुराने पुलों में से एक है , यह एक डबल-डेक स्टील ट्रस ब्रिज है जो शहर के दक्षिणी हिस्से में यमुना नदी पर बना है‌ इलाहाबाद के उपनगरीय नैनी को जोड़ता है।

 

इसके ऊपरी डेक पर दो लेन की रेलवे लाइन है जो नैनी जंक्शन रेलवे स्टेशन को इलाहाबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन से जोड़ती है, इसी पर भारत का सबसे व्यस्ततम दिल्ली-हावड़ा रेलवे ट्रैक है जिसपर प्रतिदिन सैकड़ों ट्रेन गुजरती है।

 

इस पुल को कंसल्टिंग इंजीनियर अलेक्जेंडर मीडोज रेंडेल और उनके पिता जेम्स मीडोज रेंडेल द्वारा डिजाइन किया गया और ब्रिटिश इंजीनियर मिस्टर सिवले के‌ नेतृत्व में बनाया गया।

 

यह अपने जन्म से 160 साल बाद भी सफलता पुर्वक खड़ा है और ट्रेन अपनी गति से पार कर जाती हैं, जबकि निचला डेक 1927 से सड़क के जरिए आवागमन का माध्यम है ।

 

1859 से इस पुल का निर्माण शुरू हुआ था और 15 अगस्त 1865 में इस पर ट्रेनों का आवागमन शुरू हुआ था। 3150 फीट लंबे पुल के निर्माण पर उस दौरान 44 लाख 46 हजार तीन सौ रुपये खर्च हुए थे।

 

आंकड़ों पर एक नजर डालें तो इसे बनाने में 30 लाख क्यूबिक ईंट और गारा से बने इस पुल को बनाने में 6 साल लगे थे , सभी पिलर (स्पैन) की नींव 42 फीट तक गहरी है।

 

इस पुल के पीलरों मे इलाहाबाद की जामा मस्जिद के पत्थरों को लगाया गया है जिसे कर्नल नील ने शहीद कर दिया था। मुगल शहंशाह अकबर द्वारा बनवाई गई विशाल मस्जिद संगम स्थित किले के पश्चिम मे थी जहाँ आज मिंटो पार्क है , 1857 की जंग में मौलवी लियाकत अली की शहादत के बाद अंग्रेजों ने इस जामा मस्जिद को तोड़ दिया और इसके पत्थर इसी पिलर में लगा दिये।

 

 

 

लोहे के 4300 टन गार्डर से बने इस पुल के 17 पिलर (स्पैन) में से 13 स्पैन 61 मीटर लंबे हैं, अर्थात एक एक पिलर 200 फिट के हैं। 02 स्पैन 12.20 मीटर लंबे हैं ओर 01 स्पैन 9.18 मीटर लंबा है।

 

एक पिलर 67 फीट लंबा और 17 फीट चौड़ा है जिसे हाथी पांव कहते हैं।

 

इस पुल के निर्माण से संबंधित कुछ बेहद रोचक तथ्य भी हैं।

 

17 पिलर (स्पैन) पर खड़े पुल के निर्माण के वक्त बहाव काफी तेज था। जलस्तर नौ फीट नीचे कर कुआं खोदा फिर राख और पत्थर की फर्श बिछाकर पत्थर की चिनाई की गई थी, जिसका व्यास 52 फीट था। उसके ऊपर पिलर का निर्माण कराया गया।

 

मगर इसका 13 नंबर पिलर जमुना नदी की सबसे गहरी जगह में बनना था। पानी का बहाव इतनी तेज था कि जब भी पिलर खड़ा किया जाता, बह जाता।

 

यमुना के पानी में तेज बहाव के चलते पिलर नंबर 13 को बनाने में सबसे ज्यादा परेशानी हो रही थी। पुल के और दूसरे पिलर 1862 तक लगभग बन गए थे लेकिन पिलर नंबर 13 को बनाने में करीब 2 साल का समय लग गया।

 

दिन भर में जो पिलर ढलाई का प्लेटफार्म तैयार किया जाता था वह अगली सुबह तक नदी में बह चुका होता था। कोई भी इंजीनियरिंग का नमूना एक खंबे की नींव को टिका नहीं पा रहा था। लोग रात दिन मेहनत कर रहे थे लेकिन सारी मेहनत पर यमुना की धारा पानी फेर देती थी।

 

इन्जीनियर मिस्टर सिवले अपनी डायरी में लिखते हैं कि इस जगह पानी का बहाव बहुत तेज था, बार बार पिलर गिर जाता था और पाया खड़ा नहीं हो पा रहा था। जिसके कारण पूरा पुल अधूरा था और इस कारण उनका पूरा परिवार भी परेशान रहता था। उसे रात में भी नींद नहीं आती थी।

 

कई दिन के बाद इन्जीनियर ने रात में एक सपना देखा की उसकी पत्नी उसी जगह पानी में खड़ी है और उसने सैन्डल पहन रखा है,जो ऊंचे हिल वालीं है और पानी उस सैन्डील को काटते हुये उसके अगल बगल से निकल रहा है और सैन्डील को कुछ नहीं हो रहा है तब उसने उसी सैन्डील के आकार का नक्शा बना कर ये पाया बनाया जो पानी को काटता है। तब जाकर ये पाया बन पाया जो सबसे अलग है।

 

इस 13 नंबर के पिलर को बनाने में ही 20 महीने से ज्यादा का समय लगा इसकी डीजाइन पिलर हाथी पांव या यूं कहें कि शू शेप यानी की जूते जैसा है।

 

इस पिलर को लेकर इलाहाबाद में तमाम किंवदंतियां हैं। लोग बताते हैं कि पुल बनाने वाली कंपनी को कुछ समझ नहीं आ रहा था, तभी संगम नगरी के एक तीर्थ पुरोहित ने इंजीनियरों को सलाह दी कि जब तक यमुना में मानव बलि नहीं दी जाएगी तब तक पुल निर्माण का कार्य पूरा नहीं होगा।

 

और उस दौरान यमुना में एक बलि दी गई थी जिसके बाद पुल का पिलर नंबर 13 तैयार हुआ। कहते हैं कि इस पिलर को तैयार करने के लिए पानी का स्तर 9 फीट नीचे कर कुंआ खोदा गया वहीं मानव बलि दी गई इसके बाद ही यह बन सका।

 

इस पर 52 फीट व्यास का पत्थर की चिनाई का एक मेहराब बनाया गया था, जिसके ऊपर पिलर को हाथी के पैर का आकार दिया गया और इसने पुल को स्थिरता प्रदान की है।

 

लोग कहते हैं कि रात के अंधेरे में उस जूते पर वह मानव जिसकी बलि दी गई अक्सर बैठा मिलता है।

 

बाकी इसी पुल के पास इलाहाबाद डिग्री कालेज के बगल में एक हंटेड हाऊस है जिसके ऊपर डिस्कवरी चैनल कई एपिसोड की श्रृंखला चला चुका है।

 

इस पुल से ही सटे हुए इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूट भी हंटेड इतिहास लिए हुए है जिसमें कई बार लोगों के गायब होने की घटनाएं हुईं हैं।

 

इस पुल से जुड़े हुए नैनी रेलवे स्टेशन के बारे में भी बहुत से किस्से कहानियां हैं और उसे एक भूतहा रेलवे स्टेशन माना जाता है जहां रात में वह मानव अक्सर दिखाई देता है।

 

Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें 

Advertising Space


स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे.

Donate Now

लाइव कैलेंडर

December 2025
M T W T F S S
1234567
891011121314
15161718192021
22232425262728
293031  
[responsivevoice_button voice="Hindi Male"]