*आखिर कब समझेंगे शिक्षकों का विरोध ऑनलाइन हाजिरी का है ही नहीं*

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*आखिर कब समझेंगे शिक्षकों का विरोध ऑनलाइन हाजिरी का है ही नहीं*
डीजी महोदया का बयान समाचार पत्र में जारी हुआ है उनका कहना है कि स्कूली बच्चे उनका कल्याण और उनका विकास स्कूल प्रणाली में किसी भी अन्य चीज की तुलना में पहली प्राथमिकता है। यदि कोई शिक्षक कक्षा में एक या दो घंटे की देरी से आता है तो कक्षा के दो पीरियड बर्बाद हो जाते हैं। इसलिए शिक्षक उपस्थिति को मजबूत करना महत्वपूर्ण हो जाता है। महानिदेशक ने कहा आधे घंटे का ग्रेस टाइम भी दिया गया है, जो स्कूल में एक कक्षा के लिए लगभग एक पीरियड के बराबर है।
महोदया, शिक्षक के केंद्र में भी छात्र का उत्थान होता है। कोई शिक्षक किसी छात्र का अहित नहीं चाहता और न ही करता है। उसका सदैव ध्यान अपना सर्वश्रेष्ठ देने की ओर ओर रहता है। शिक्षक ऑनलाइन हाजिरी नहीं देंगे ये शोर हर जगह मचा है लेकिन यह कोई जानना नहीं चाहता असल वजह क्या है? असल वजह ऑनलाइन हाजिरी है ही नहीं, वजह है ऑनलाइन हाजिरी की आड़ में शिक्षकों का जो शोषण होने जा रहा है वह चुनौतीपूर्ण है। शिक्षकों की प्रमुख समस्याओं को दरकिनार कर दिया गया है और जबरन हंटर चलाया जा रहा है। शिक्षकों की प्रमुख मांग यही है कि अन्य विभागों में हाजिरी की जो व्यवस्था है उसी भांति हाजिरी होनी चाहिए। साथ ही शिक्षकों को वह सब अवकाश दिए जाने चाहिए जो एक नवोदय विद्यालय समिति , केंद्रीय विद्यालय समिति के शिक्षकों के साथ साथ समस्त सरकारी कार्मिक को देय रहते हैं।
पूरे वर्ष में सिर्फ 14 आकस्मिक अवकाश शिक्षकों को दिए जाते हैं, अब यह विचारणीय है कि क्या 14 अवकाश में पूरा वर्ष गुजर सकता है। प्राकृतिक आपदा, रोज मिड डे मील के लिए सब्जियां ढोता शिक्षक, सोमवार को फलों की टोकरी लादे दौड़ता भागता शिक्षक, गांव के बीहड़ इलाकों में जाते शिक्षक, आवागमन के साधनों के अभाव में विद्यालय पहुंचता शिक्षक। शिक्षकों की यह मांग कोई आज ही अचानक नही उठ खड़ी हुई है, यह मांग कई सालों से चली आ रही है। विरोध आज चरम पर इसलिए हैं क्योंकि सरकार शिक्षक हित में एक कार्य नही करती वही दूसरी ओर शोषण के सभी रास्ते अपनाती है।
मीडिया जगत के बंधु भी शिक्षकों को गालियां देने और कोसने में जुटे हैं जबकि उनको भी 32 ई एल, 12 से 14 आकस्मिक अवकाश दिए जाते हैं। उनसे पूछता हूं यदि उन्हें 12 आकस्मिक अवकाश दिए जाए और उनके परिवार में मृत्यु हो जाए किसी की तो वे 13 दिन का शोक किस अवकाश के तहत मनाएंगे। मीडिया बंधुओ से आग्रह है मानवीय संवेदना जिंदा रखिए, व्यवहारिक पक्ष दिखाइए, हमारा विरोध ऑनलाइन हाजिरी नही है , सरकार की शोषणकारी नीतियों का है।
इसलिए आग्रह है व्यवस्था से कि अध्यापक को गैंगस्टर, रैकेट, सेटिंग, कामचोर, प्रॉक्सी जैसे शब्दों से न नवाजे। आप आज जो लिख बोल और पढ़ पा रहे हैं वह एक शिक्षक की देन है। मूल समस्याओं पर चर्चा करें, चिंतन करें। ऐसी आशा है….
_एक शिक्षक_ दबी जुबान से

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